सितम्बर 1921 में पैदा हुए पॉल स्मिथ को “स्पास्टिक सेरिब्रल पाल्सी (Spastic Cerebral Palsy)” नाम की एक बिमारी थी। जिसका मलतब है, बचपन से ही उनका अपने चेहरे पे, अपने अंगो पे, बोली पे उनका नियंत्रण नहीं था। इसी वजह से वो खुद से नहाना, कपडे पहनना, या खाना खाने जैसे काम भी नहीं कर सकते थे। वो खुद को ढंग से व्यक्त नहीं कर सकते थे, और वो स्कूल भी नहीं जा सकते थे।
पर पॉल स्मिथ जैसे लोग यह साबित करते है कि अगर मन में कुछ करने की इच्छा है, तो बड़ी से बड़ी समस्या आपको नहीं रोक सकती। पॉल को पेन्टिंग करने का शौक था। और इतनी समस्या के बावजूद कुछ नया करने का जूनून था।
इसी हिम्मत और साहस के साथ उन्होंने सुरुआत की “टाइपराइटर पेन्टिंग” की।
सोचो वो ढंग से कुंजी (Key) भी नहीं दबा सकते थे। अपने बाए हाथ से अपने दाये हाथ को पकड़ के Key दबाते थे। और करते थे टाइपराइटर पे पेन्टिंग ।
एक से बढकर एक पेन्टिंग बना कर उन्होंने यह साबित किया कि विकलांगता सिर्फ दिमाग में होती है। उन्होंने अपने विकलांगता पर ध्यान देने के जगह अपनी योग्यता के साथ अपनी एक पहचान बनाई अपना एक नाम बनाया।
जब जिंदगी में एक दरवाजा बंद होता हेना तो दूसरा दरवाजा जरुर खुलता है। लेकिन हम में से कुछ लोग उस बंद दरवाजे को देख के अफ़सोस करते रहते है। उस बंद दरवाजे को देख के परेशान होते रहते है।
लेकिन कुछ लोग बंद दरवाजे को देखने के बजाय उस खुले हुए दरवाजे को देखते है और अपनी एक पहचान बनाते है।
पॉल स्मिथ से मेने एक चीज जरुर सीखी कि अगर इन्शान ठान ले तो उसकी वीर शक्ति के आगे बड़ी से बड़ी चुनौती भी आसन हो जाती है।
उसकी वीर शक्ति के आगे बड़ी से बड़ी बीमारी भी कुछ नहीं कर सकती। इन्शान के वीर शक्ति के आगे बड़ी से बड़ी समस्या भी छोटी हो जाती है।
तो कुछ भी हो जाये कभी, कभी, कभी, कभी हार मत मानो..!!
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